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दिवस संबंधों का

दिवस संबंधों का
आज दिवस संबंधों का,मनाना पड़ता है।
जनक-जानकी-रिश्ते को,जताना पड़ता है।।

  पिता गगन गंभीर और माता है पृथ्वी जैसी,
  इस विचार की अब तो समझो हो गई ऐसी-तैसी।
  भाई-बहन हैं दीपक-बाती, को बताना पड़ता है।।
                          आज दिवस संबंधों.....।।

पिता-पुत्र-संबंध मित्रवत,सोलह का जब बेटा,
ऐसा लिखा विचार शास्त्र में,कहते शास्त्र-प्रणेता।
अपनी इसी पुरानी थाती को,बचाना पड़ता है।।
                      आज दिवस संबंधों.....।।

परत धूल की जमी हुई है,मानो अब संबंधों पर,
पड़ती नहीं दृष्टि अब जानो,कुल के सब अनुबंधों पर।
कर के पुनि संबंध-स्मरण माटी को,हटाना पड़ता है।।
                 आज दिवस संबंधों......।।

पूरब के प्राचीन मूल्य पर, दखल हो गया पश्चिम का,
भौतिकवादी आपा-धापी,स्वार्थ भंगिमा बंकिम का।
कुप्रभाव से बिछड़े जीवन-साथी को-मिलाना पड़ता है।।
                आज दिवस संबंधों........।।

ऐसी प्रथा पश्चिमी मित्रों,शोभा बनी वतन की,।
दिवस एक पर स्मृति रखना,प्रथा हुई शुभ चिंतन की।
कुत्सित ऐसी प्रचलन को अब,चलाना पड़ता है।।
              आज दिवस संबंधों.........।।

संस्कृति-मूल्य स्वतंत्र देश के,होते एक धरोहर हैं,
यही बनाते किसी राष्ट्र को,अनुपम और मनोहर हैं।
दिवस एक ले शपथ सभी बरबादी को-भगाना पड़ता है।।
            आज दिवस संबंधों........।।

राष्ट्र-स्वतंत्रता-दिवस मनाना,सबसे उत्तम मित्रों,
पंख पसारे खुले गगन में,उड़ता पंछी सक्षम मित्रों।
जन-जन में बस सुप्त बोध आज़ादी को-जगाना पड़ता है।।
   आज दिवस संबंधों का,मनाना पड़ता है।।
                            ©डॉ. हरि नाथ  मिश्र
                                9919446372

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4 Comments

Mohammed urooj khan

19-Oct-2023 11:56 AM

👌👌👌👌

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बेहतरीन और यथार्थ चित्रण वास्तविकता का

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Punam verma

18-Oct-2023 07:36 AM

Nice👍

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